इस्तिखारा ( खैर हासिल करें ) : सही फैसले के लीए अल्लाह के फजलो करम और रहनुमाई की दरख्वास्त
इस्तिखारा का असल मतलब है "जीस मे खैर है वो हासील हो" और 3-कदम निर्णय लेने की प्रक्रिया का तीसरा भाग है:
रकात नफल नमाज पढें (५ वकत फर्ज नमाज के अलावा) और इस दौरान सूरह फातीहा के बाद कोई भी सूरह पढ सकते हैं क्योंकि अल्लाह के नबी आप सल्लाह अल्यही वस्सलम ने खास सूरह या आयात नही बताई थी। नमाज के खत्म होने के बाद यानी सलाम फिराने के बाद इस्तिखारा कि दुआ अरबी में पढें जिस तरह आप सल्लाह अल्यही वस्सलम ने बताई हैं और उसके बाद अपनी भाषा मे अपनी जरूरत का इजहार करें। अगर याद नही रहे तो कागज़ या फोन के जरिये पढें। अगर आप अरबी पढ नही सकते तो आप इस वेबसाइट पर इस्तिखारा की दुआ की अरबी लिपी को पढ सकते हैं। इसके अलावा और किसी दुआ की जरूरत नही।
जरूरी नही के आपको कोई सपना या द्रिशय या निशानी इत्यादि नजर आएंगे। अल्लाह आपके दिल मे उस चीज़ को पूरा करने या नही करने की ओर झुकाव डाल देंगे
इस्तिखारा कोई करिशमा या चमत्कार नही बल्कि कूदरती तरीका है जीसके जरिए अल्लाह आपके फैसले मे बरकत देंगे. इस्तिखारा कीसी नाजयज हराम चिज (चूनांचे - कया मूझे शराब पीनी चाहिए?) के लीए करना या एसी चीज पे करना जो फरज हैं (चूनांचे - कया मूझे ईशा की नमाज पढनी चाहिए?) मना हैं. फैसले पर अफसोस ना जताए कयोंकी ऐसा करना अल्लाह की हीदायत पर शक और अफसोस के बराबर हैं. अगर आपके फैसले का नतीजा आपकी सोच के मूताबीक ना हो तो आप इसे बेहतर ही समझ के चले और ईसमे कूछ अच्छा हैं जो फीलहाल आपकी समझ के बाहर है।
तो समझे के अल्लाह ने जान बूझ के आपके दील मे उसका जवाब बताया नही. ईसका मतलब हो सकता है की अल्लाह चाहते है की आप उनसे आजीजी के साथ इसे मांगते रहे और पूरे धयान के साथ उनकी मदद और इच्छा के लीए निवेदन करते रहें. दूआ मांगते रहे और उम्मिद रखें. बार बार मांगने पर भी जवाब नही मीलता,तो यह वजह नही के आप मांगना ही छोड दे
यह जीसकी जरूरत हो उसी को करना बेहतर हैं
अल्लाह सबसे वाकीफ हैं. सबसे बडा गूनहगार भी बदल के अल्लाह की तरफ मूड सकता है. यह केवल आपकी अल्लाह पे भरोसा रखने की और आपकी आस्था की परीक्षा है
ईस परिस्थिति मे सभी को अपना खूद का इस्तिखारा करना चाहिए
हाँ ऐसा करने से आपके काम मे बरकत बढेगी. सहाबाए इकराम रोज मऱा की जिंदीगी मे इस्तिखारा किया करते थे
हाँ केवल दूआ पढना काफी है. रसूल सल्लाह अल्यही वस्सलम के बताए हूए तरीके के मूताबीक नमाज पढनी चाहिए, लेकीन आप केवल दूआ भी पढ सकते हैं अगर इसका अकसर अाप इसतेमाल करते हैं या तुरंत फैसला लेना हो. जो बहने नमाज ना पढने की हालात मे केवल दुआ पढ ले तो भी ईनशा अल्लाह सही और वाजीब है
इस दुआ को हिंदी मे पढ लें अल्लाह आपकी दुआ समझतें हैं चाहे जीस भाषा मे हो. और हमेशा अल्लाह से दिल से मांगते रहें. अल्लाह देखना चाहते हैं के आप सच मे पूरी आसथा के साथ केवल उनही से मांगते हैं. अगर यह आप अरबी के अलावा कोइ और भाषा मे अच्छे से करते है तो भी कोइ दीक्कत नही
रसूल सल्लाह अल्यही वस्सलम ने यह दुआ हमे सिखाइ थी और जो उनहोने दुआ बताई है उसे दोहराने मे ज्यादा बरकत है. सहाबा-ए-इकराम कहते थे के आप सल्लाह अल्यही वस्सलम ने यह दुआ उसी तरह सिखाइ थी जिस तरह कूरान के भाग सिखाए।
नही. इस्तिखारा अल्लाह के बंदे की अल्लाह से आजीजी के साथ अपने फैसले मे बरकत हासील करने की कोशीश है लेकीन अल्लाह इतने दयालू हैं की बरकत देने मे आपकी कोशीशो पर बिलकूल निरभर नही.
पैगंबर रसूल सल्लाह अल्यही वस्सलम ने इसके बारे मै कोइ सीमा स्थित नही कि थी. तो चाहे एक बार हो या हजार बार यह आपके और अल्लाह के बीच है. अगर आपके दिल मे कोई फैसला नही बैठ रहा तो अल्लाह से मांगते रहें. यदी आपके दिल मै कोई झूकाव हो तो ईसे अल्लाह की तरफ से समझकर ईसे कबूल करें. यह फैसला “सही” होगा यह घडी घडी पूँछने की जरूरत नही